गायत्री मंत्र के जप का संपूर्ण विधान
वैसे गायत्री मंत्र का पाठ किसी भी प्रकार से करने पर लाभ प्राप्त होता है लेकिन उसे विधि पुर्वक करने के अपना अलग हि महत्व है
जैसे
दरिद्रता का नाश
सन्तान सम्बन्धी परेशानी से छुटकारा
शत्रु परास्त होते हैं
विवाह कार्य में अड़चन में लाभ
रोग निवारण मे सहायक आदि अनेक लाभ हैं मां गायत्री जप के
गायत्री जप का विधान
सर्व प्रथम ब्रह्म मूहुर्त मे स्नान आदि से निवृत्त होकर गायत्री मां की प्रतिमा के सामने आसन पर आराम से बैठ जाइये
और मानसिक शुध्दि का मंत्र बोलें और जल छिड़कें
ऊँ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोsपि वा /
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः //
ऊँ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु /
गायत्री - जपका विधान षडङ्गन्यास - गायत्री - मन्त्रके जपके पूर्व षडङ्गन्यास करनेका विधान है। अतः आगे लिखे एक - एक मन्त्रको बोलते हुए चित्रके अनुसार उन अगोंका स्पर्श करे
ऊँ हृदयाय नमः
ऊँ भूः शिरसे स्वाहा
ऊँ भुवः शिखायै वषट्
ऊँ स्वः कवचाय हुम्
ऊँ भूर्भुवः स्वः नेत्राभ्यां वौषट्
ऊँ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट्
आवाहन मंत्र विनियोग
तेजsसीति धामनामासीत्यस्य च परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिर्यस्त्रिष्टुबुष्णिहौ छन्दसी आज्यं देवता गायत्र्यावाहने विनियोग
'ॐ तेजोॐसि शुक्रम्रासस्मृतमसि। धन्मनाशिनी प्रियं देवानाम्ना धृष्टं देवयज्ञमसि।
गायत्रीदेवीका उपस्थान (प्रणाम) -आवाहन करने पर गायत्री देवी आ गयी हैं, ऐसे मानकर निम्नलिखित विनियोग पढ़कर मन्त्रसे उन्हें प्रणाम करे
गायत्रीयसी विवस्वान् ऋषि ऋषिः स्वराणमपपत्तिमछन्दन्दः परमात्मा गायत्रीपरा। ॐ गायत्र्यस्येकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसिद्धि। न हि पद्यसे नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पद पर परजसेऽसावदो मा प्राप्ति।
गायत्री - उपस्थानके बाद गायत्री - शापविमोचनका और गायत्री मन्त्र - जपसे पूर्व चौबीस मुद्राओंके करनेका भी विधान है, लेकिन नित्य संज्ञाजनन्यास अनिवार्य न होनेपर भी उन्हें जो विशेषरूपसे करने को तैयार हैं, उनके लिए यहाँ विशेष रूप से दिया जा रहा है।
गायत्री - शापविमोचन ब्रह्मा, वसिष्ठ, विश्वामित्र और शुक्रके द्वारा गायत्री मन्त्र शापित है। अतः शाप - निवृत्तिके हेतु शाप - विमोचन करना चाहिए।
(१) ब्रह्म - शापविमोचन - विनियोग |
- अस्य श्रीब्रह्म शापविमोचनमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिर्भुक्तिमुद् ब्रह्मदापविमोचनी गायत्री शक्तिर्देवता गायत्री छन्दः ब्रह्मशापविमोचने विनियोगः।
ॐ गायत्रीं ब्रह्मेत्युपासीत यद्रूपं ब्रह्मविदो विदुः। तां पश्यन्ति धीराः सुमनसो वाचामग्रो ।। ॐ वेदान्तनाथ विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्म प्रचोदयात्। ॐ देवि! गायत्री! त्वं ब्रह्मश्पाद्विमुक्ता भव।
(२) वसिष्ठ - शपविमोचन - विनियोग ओम अस्य श्री वसिष्ठ शापविमोचनमन्त्रस्य निग्राहानुग्रहचार्य वसिष्ठ ऋषिरस्विनस्तुनुग्रहीता गायत्री शक्तिर्देवता विश्वोद्भव गायत्री छन्द: वशिष्ठ शाप विमोचनार्थ जपे विनियोगः
ॐ सोSहमर्कयमं ज्योतिरात्मज्योतिरहं शिवः। आत्मज्योतिरहं शुक्र: सर्वज्योतिरसो्यस्म्यहम्
योनीमुद्रा दिखाकर तीन बार गायत्री मंत्र जपे।
ॐ देवि! गायत्री! त्वं वसिष्ठशापाद्विमुक्ता भव।
(३) विश्वामित्र - शापविमोचन - विनियोग - ऊँ अस्य श्रीविश्वामित्रशापवमोचनमंत्रस्य नूतनसृष्टिकर्ता विश्वामित्रऋषिर्विश्वामित्रानुगृहीता गायत्री शक्तिर्देवता वाग्देहा गायत्री छन्दः विश्वामित्रशापविमोचनार्थ जपे विनियोगः। मन्त्र
ऊँ गायत्री भजाम्यग्निमुखिं विश्वगर्भा यदुद्भवाः। देवाश्चक्रिरे विश्वसृष्टिं तां कल्याणीमिष्टकरीं प्रपद्ये
ॐ देवि! गायत्री! त्वं विश्वामित्रश्चापाद्विमुक्ता भव।
(४) शुक्र - शापविमोचन - विनियोग -
ऊँ अस्यश्रीशुक्रशाप विमोचनमन्त्रस्य श्रीशुक्रऋषिः अनुष्टुप्छन्दः देवी गायत्री देवता शुक्रश्चापविमोचनार्थ जपे विनियोगः।
मन्त्र
सो्योहमर्कमयं ज्योतिरर्कज्योतिरहं शिवः। आत्मज्योतिरहं शुक्रः सर्वज्योतिरसो्यस्म्यहम् ।।
ॐ देवि! गायत्री! त्वं शुक्रशापाद्विमुक्ता भव।
प्रार्थना
ऊँ अहो देवि महादेवी संध्ये विद्ये सरस्वती! अजरे अमरे चैव ब्रह्म्योनिर्नमोस्तुते ।। ॐ देवि गायत्री त्वं ब्रह्मशापाद्विमुक्ता भव वसिष्ठाशापाद्विमुक्ता भव, विश्वामित्रशापाद्विविमुक्ता भव, शुक्राशपद्विमुक्ता भव।
जप से पूर्व की चौबीस मुद्रायें ।
सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा
द्विमुखम् त्रिमुखम चैव चतुष्पंचमुखम् तथा।
षण्मुखाsधोमुखं चैव व्यपाकंजलिकं तथा।
शकटं यमपाशं च ग्रथितं चोन्मुुखोन्मुखं।
प्रलम्बं मुष्टिकं चैव मत्स्यः कूर्मो वराहकम्।
सिंहक्रांतं महाक्रांतं मुद्गरं पल्लवं तथा।
एता मुद्राश्चतुर्विंशज्जापादौ परिकीर्तिताः ।
गायत्री - मन्त्रका विनियोग - इसके बाद गायत्री मन्त्रक जपके विनियोग पढ़े -
ऊँकारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दः परमात्मा देवता, ऊँ भूर्भुवः स्वरिति महाव्याहृतिनां परमेष्ठि प्रजापति
र्ऋषिर्गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दासि अग्निवायुसूर्या देवताः, ऊँ तत्सवितुरित्यस्य विश्वामित्रऋषिर्गायत्री छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः
इसके पश्चात कम से कम 108 बार गायत्री मंत्र का जप करें
गायत्री - मन्त्र
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।
शक्तिमन्त्र जपकी करमाला - चित्र - संख्या के अनुसार अंक एकसे आरम्भकर दस अंक तक अँगूठे से जप करनेसे एक करमाला होती है (दे ० भा ० १११। १ ९-९ १ ९) तर्जनीका मध्य और अग्रपर्व सुमेरु है। इस प्रकार दस करमाला जप करनेसे जप - संख्या एक सौ हो जायगी, तत्पश्चात चित्र - संख्या २ के अनुसार अंक १ से आरम्भ कर अङ्क ८ तक जप करनेसे १०८ की एक माला होती है।
जपके बादकी आठ मुद्राएँ
सुरभिर्ज्ञानवैराग्ये योनिः शंखोङथ पंकजम् लिंगनिर्वाणमुद्राश्च जपान्तेsष्टौ प्रदर्शयेत्
सूर्य - प्रदक्षिणा
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ।।
भगवानको जपका अर्पण - अंतर्धान भगवान्को यह वाक्यबोलते हुए जप निवेदित करे -
अनेन गायत्रीजपकर्मणा सर्वान्तर्यामी भगवान् नारायणः प्रीयतां न मम्।
गायत्री देवीका विसर्जन - निम्नलिखित विनियोगके साथ आगे बताये गये मन्त्रसे गायत्रीदेवीका विसर्जन करे
विनियोग - '
उत्तमे शिखरे' इत्यस्य वामदेव ऋषिरुष्टुप् छन्दः गायत्री देवता गायत्रीविसर्जने विनियोगः।
गायत्रीके विसर्जनका मन्त्र
ऊँ उत्तमे शिखरे देवी भूम्यां पर्वतमूर्धनी। ब्राह्मणेभ्योऽभ्यानुज्ञाता गच्छ देवि! यथासुखम्।
बहुत अच्छा, ध्यान देने योग्य।
ReplyDeleteधन्यवाद कृपया ज्यादा से ज्यादा शेयर करे 🙏
Deleteकृपया सनातन धर्म और पद्धति को और सभी तक पहुंचाने की कृपा करें
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